पुष्पक विमान

              रामायण के अनुसार रावण के पास कई लड़ाकू विमान थे। पुष्पक विमान के निर्माता विश्वकर्मा थे। कुछ के अनुसार पुष्‍पक विमान के निर्माता ब्रह्मा थे। ब्रह्मा ने यह विमान कुबेर को भेंट किया था। कुबेर से इसे रावण ने छीन लिया। रामायण में वर्णित है कि रावण पंचवटी से माता सीता का हरण करके पुष्पक विमान से लंका लेकर आया था। रावण की मृत्‍यु के बाद विभीषण इसका अधिपति बना और उसने फिर से इसे कुबेर को दे दिया। कुबेर ने इसे राम को उपहार में दे दिया था। राम लंका विजय के बाद अयोध्‍या इसी विमान से पहुंचे थे।

 

            उल्लेखनीय है कि लंका में लड़ाकू विमानों की व्‍यवस्‍था प्रहस्‍त के सुपुर्द थी। यानों में ईंधन की व्‍यवस्‍था प्रहस्‍त ही देखता था। लंका में सूरजमुखी पौधे के फूलों से तेल (पेट्रोल) निकाला जाता था। (अमेरिका में वर्तमान में जेट्रोफा पौधे से पेट्रोल निकाला जाता है।) अब भारत में भी रतनजोत के पौधे से तेल बनाए जाने की प्रक्रिया में तेजी आई है। लंकावासी तेलशोधन में निरंतर लगे रहते थे।


               रावण का वध करने के बाद लंका से अयोध्या जाते समय राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान जी इसी विमान से अयोध्या लौटे थे। श्री लंका के श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रावण के पास अपने पुष्क विमान को रखने के लिए चार हवाई अड्डे थे। इन चार हवाई उड्डे में से एक का नाम उसानगोड़ा था। इस हवाई अड्डे को हनुमान जी ने लंका दहन के समय जलाकर नष्ट कर दिया था। अन्य तीन हवाई अड्डे गुरूलोपोथा, तोतूपोलाकंदा और वारियापोला थे जो सुरक्षित बच गए।


              पुष्पक विमान की खासियत : वाल्मीकि रामायण के अनुसार पुष्‍पक विमान मोर जैसी आकृति का आकाशचारी विमान था, जो अग्‍नि-वायु की समन्‍वयी ऊर्जा से चलता था। इसकी गति तीव्र थी और चालक की इच्‍छानुसार इसे किसी भी दिशा में गतिशील रखा जा सकता था। इसे छोटा-बड़ा भी किया जा सकता था। यह सभी ऋतुओं में आरामदायक यानी वातानुकूलित था। इसमें स्‍वर्ण खंभ मणिनिर्मित दरवाजे, मणि-स्‍वर्णमय सीढ़ियां, वेदियां (आसन) गुप्‍त गृह, अट्‌टालिकाएं (कैबिन) तथा नीलम से निर्मित सिंहासन (कुर्सियां) थे। अनेक प्रकार के चित्र एवं जालियों से यह सुसज्‍जित था। यह दिन और रात दोनों समय गतिमान रहने में समर्थ था।


             तकनीकी दृष्‍टि से पुष्‍पक में इतनी खूबियां थीं, जो वर्तमान विमानों में नहीं हैं। ताजा शोधों से पता चला है कि यदि उस युग का पुष्‍पक या अन्‍य विमान आज आकाश गमन कर ले तो उनके विद्युत-चुंबकीय प्रभाव से मौजूदा विद्युत व संचार जैसी व्‍यवस्‍थाएं ध्‍वस्‍त हो जाएंगी। पुष्‍पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्‍यक्‍ति से संचालित होता था जिसने विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो, मसलन जिसके हाथ में विमान को संचालित करने वाला रिमोट हो।


                शोधकर्ता भी इसे कंपन तकनीक (वाइब्रेशन टेक्नोलॉजी) से जोड़कर देख रहे हैं। पुष्‍पक की एक विलक्षणता यह भी थी कि वह केवल एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक ही उड़ान नहीं भरता था, बल्‍कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आवागमन में भी सक्षम था यानी यह अंतरिक्ष यान की क्षमताओं से भी युक्‍त था। इस विवरण से जाहिर होता है कि यह उन्‍नत प्रौद्योगिकी और वास्‍तुकला का अनूठा नमूना था।

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